सुनाई देती है सात आसमाँ में गूँज अपनी
तुझे पुकार के हैरान उड़ते फिरते हैं
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क़ाएदे बाज़ार के इस बार उल्टे हो गए
इस बार इंतिज़ाम तो सर्दी का हो गया
रूह की थाप न रोको कि क़यामत होगी
किसी के साए किसी की तरफ़ लपकते हुए
नाम से उस के पुकारूँ ख़ुद को
इश्क़ क्या है ख़ूबसूरत सी कोई अफ़्वाह बस
तौक़-ए-बदन उतार के फेंका ज़मीं से दूर
कुछ न था मेरे पास खोने को
हर मुत्तक़ी को इस से सबक़ लेना चाहिए
दिन को रुख़्सत किया बहाने से
फ़लक का थाल ही हम ने उलट डाला ज़मीं पर
इश्क़ में सच्चा था वो मेरी तरह