सुना है शोर से हल होंगे सारे मसअले इक दिन
सो हम आवाज़ को आवाज़ से टकराते रहते हैं
Javed Akhtar
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Parveen Shakir
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Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Anwar Masood
Rahat Indori
Wasi Shah
Gulzar
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मुझ को भी पहले-पहल अच्छे लगे थे ये गुलाब
ज़रा ये हाथ मेरे हाथ में दो
कुछ न था मेरे पास खोने को
भरे हुए हैं अभी रौशनी की दौलत से
हैं लापता ज़माने से सारे के सारे ख़्वाब
इतनी ताज़ीम हुई शहर में उर्यानी की
वो साँप जिस ने मुझे आज तक डसा भी नहीं
ऐसी ही एक शब में किसी से मिला था दिल
नाम से उस के पुकारूँ ख़ुद को
क़ाएदे बाज़ार के इस बार उल्टे हो गए
ऐसे मिले नसीब से सारे ख़ुदा कि बस
सब फ़ना होते हुए शहर हैं निगरानी में