वो साँप जिस ने मुझे आज तक डसा भी नहीं
तमाम ज़हर सुख़न में मिरे उसी का है
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Habib Jalib
Rahat Indori
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Anwar Masood
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(411) Peoples Rate This
वो अपने शहर-ए-फ़राग़त से कम निकलता है
इतनी ताज़ीम हुई शहर में उर्यानी की
आम मुआफ़ी के लिए
ऐसी ही एक शब में किसी से मिला था दिल
अच्छा इश्क़
फ़्रीज़र में रक्खी शाम
दश्त में रात बनाते हुए डरता हूँ मैं
इस बार इंतिज़ाम तो सर्दी का हो गया
किसी के साए किसी की तरफ़ लपकते हुए
हम को डरा कर, आप को ख़ैरात बाँट कर
मिरा कुछ रास्ते में खो गया है
पहनते ख़ाक हैं ख़ाक ओढ़ते बिछाते हैं