पहनते ख़ाक हैं ख़ाक ओढ़ते बिछाते हैं
हमारी राय भी ली जाए ख़ुश-लिबासी पर
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अपनी आहट पे चौंकता हूँ मैं
क़ाएदे बाज़ार के इस बार उल्टे हो गए
ऐसी ही एक शब में किसी से मिला था दिल
भीक
आम मुआफ़ी के लिए
अब इसे ग़र्क़ाब करने का हुनर भी सीख लूँ
चाहता हूँ मैं तशद्दुद छोड़ना
कोई समझाए मिरे मद्दाह को
आसमानों से ज़मीं की तरफ़ आते हुए हम
हम को डरा कर, आप को ख़ैरात बाँट कर
दूर जितना भी चला जाए मगर
सब अपने अपने ख़ुदाओं में जा के बैठ गए