ऐसी ही एक शब में किसी से मिला था दिल
बारिश के साथ साथ बरसती है रौशनी
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मोहब्बत वाले हैं कितने ज़मीं पर
अपनी मर्ज़ी के ख़िलाफ़
नाम से उस के पुकारूँ ख़ुद को
दिन-ब-दिन घटती हुई उम्र पे नाज़िल हो जाए
कैसी जन्नत के तलबगार हैं तू जानता है
क़ाएदे बाज़ार के इस बार उल्टे हो गए
रोक दो ये रौशनी की तेज़ धार
दिन को रुख़्सत किया बहाने से
और मत देखिए अब अद्ल-ए-जहाँगीर के ख़्वाब
हर मुत्तक़ी को इस से सबक़ लेना चाहिए
पाँव के नीचे से पहले खींच ली सारी ज़मीं
कोई समझाए मिरे मद्दाह को