वो जो मुस्तक़बिल के ड्राइंग रूम में बैठे
माज़ी का क़हवा पी रहे हैं
हाल बहुत बड़ी बिसात है शतरंज की
उन के लिए
और आम आदमी
वो मोहरा जो पिट रहा है
शाह को बचाने के लिए
अपनी मर्ज़ी के ख़िलाफ़
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Habib Jalib
Rahat Indori
Gulzar
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Anwar Masood
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ऐसी ही एक शब में किसी से मिला था दिल
मौसम-ए-वज्द में जा कर मैं कहाँ रक़्स करूँ
हैं लापता ज़माने से सारे के सारे ख़्वाब
हर मुत्तक़ी को इस से सबक़ लेना चाहिए
ज़रा ये हाथ मेरे हाथ में दो
डर डर के जागते हुए काटी तमाम रात
जाने किस उम्मीद पे छोड़ आए थे घर-बार लोग
किसी के साए किसी की तरफ़ लपकते हुए
सितारा-साज़ ये हम पर करम फ़रमाते रहते हैं
वो तंज़ को भी हुस्न-ए-तलब जान ख़ुश हुए
आम मुआफ़ी के लिए