और मत देखिए अब अद्ल-ए-जहाँगीर के ख़्वाब
और कुछ कीजिए ज़ंजीर हिलाने के सिवा
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वो तंज़ को भी हुस्न-ए-तलब जान ख़ुश हुए
भरे हुए हैं अभी रौशनी की दौलत से
हम जैसों ने जान गँवाई पागल थे
हैं लापता ज़माने से सारे के सारे ख़्वाब
इतनी ताज़ीम हुई शहर में उर्यानी की
मुझ को भी पहले-पहल अच्छे लगे थे ये गुलाब
सब जहाँगीर नियामों से निकल आएँगे
ख़ुदा मुआफ़ करे सारे मुंसिफ़ों के गुनाह
क़ाएदे बाज़ार के इस बार उल्टे हो गए
सड़क के दोनों तरफ़ ख़ैरियत है
दिल दे न दे मगर ये तिरा हुस्न-ए-बे-मिसाल