नाम से उस के पुकारूँ ख़ुद को
आज हैरान ही कर दूँ ख़ुद को
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तबाह ख़ुद को उसे ला-ज़वाल करते हैं
उस का मिलना कोई मज़ाक़ है क्या
ये ख़्वाब कौन दिखाने लगा तरक़्क़ी के
अब इसे ग़र्क़ाब करने का हुनर भी सीख लूँ
जाने किस उम्मीद पे छोड़ आए थे घर-बार लोग
एक आयत पढ़ के अपने-आप पर दम कर दिया
मुझ को भी पहले-पहल अच्छे लगे थे ये गुलाब
सितारा-साज़ ये हम पर करम फ़रमाते रहते हैं
तबाह कर तो दूँ ज़ाहिर-परस्त दुनिया को
अपनी आहट पे चौंकता हूँ मैं
डर डर के जागते हुए काटी तमाम रात
क़ाएदे बाज़ार के इस बार उल्टे हो गए