ये ख़्वाब कौन दिखाने लगा तरक़्क़ी के
जब आदमी भी अदद में शुमार होने लगे
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Anwar Masood
Gulzar
Wasi Shah
Javed Akhtar
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
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चाहता हूँ मैं तशद्दुद छोड़ना
एक करवट पे रात क्या कटती
आम मुआफ़ी के लिए
मिरी ख़ुशियों से वो रिश्ता है तुम्हारा अब तक
इस बार इंतिज़ाम तो सर्दी का हो गया
चख लिया उस ने प्यार थोड़ा सा
सड़क के दोनों तरफ़ ख़ैरियत है
भीक
सब फ़ना होते हुए शहर हैं निगरानी में
वो मेरे लम्स से महताब बन चुका होता
कबूतरों में ये दहशत कहाँ से दर आई
क़ाएदे बाज़ार के इस बार उल्टे हो गए