एक करवट पे रात क्या कटती
हम ने ईजाद की नई दुनिया
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हम को डरा कर, आप को ख़ैरात बाँट कर
पूछो कि उस के ज़ेहन में नक़्शा भी है कोई
अब इसे ग़र्क़ाब करने का हुनर भी सीख लूँ
रोक दो ये रौशनी की तेज़ धार
भीक
मैं ख़ानक़ाह-ए-बदन से उदास लौट आया
सितारा-साज़ ये हम पर करम फ़रमाते रहते हैं
चाहता हूँ कि पुकारे तुम्हें दिन रात जहाँ
लिपटा भी एक बार तो किस एहतियात से
एक दिन दोनों ने अपनी हार मानी एक साथ
दिन-ब-दिन घटती हुई उम्र पे नाज़िल हो जाए
तबाह ख़ुद को उसे ला-ज़वाल करते हैं