लिपटा भी एक बार तो किस एहतियात से
ऐसे कि सारा जिस्म मोअत्तर न हो सके
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डूबने वाला ही था साहिल बरामद कर लिया
मैं अगर तुम को मिला सकता हूँ महर-ओ-माह से
तिरे बग़ैर कोई और इश्क़ हो कैसे
सुनाई देती है सात आसमाँ में गूँज अपनी
दिल भी एहसासात भी जज़्बात भी
किसी के साए किसी की तरफ़ लपकते हुए
वो मेरे लम्स से महताब बन चुका होता
क़ाएदे बाज़ार के इस बार उल्टे हो गए
तबाह कर तो दूँ ज़ाहिर-परस्त दुनिया को
रात लम्बी थी सितारा मिरा ताजील में था
ये ख़्वाब कौन दिखाने लगा तरक़्क़ी के