तिरे बग़ैर कोई और इश्क़ हो कैसे
कि मुशरिकों के लिए भी ख़ुदा ज़रूरी है
Jaun Eliya
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ज़रा ये हाथ मेरे हाथ में दो
मुझे कुछ याद आता है
एक दिन दोनों ने अपनी हार मानी एक साथ
किसी के साए किसी की तरफ़ लपकते हुए
हम को डरा कर, आप को ख़ैरात बाँट कर
नए चराग़ की लौ पाँव से लिपटती है
इस बार इंतिज़ाम तो सर्दी का हो गया
मिरी ख़ुशियों से वो रिश्ता है तुम्हारा अब तक
भरे हुए हैं अभी रौशनी की दौलत से
सहरा ओ शहर सब से आज़ाद हो रहा हूँ
पूछो कि उस के ज़ेहन में नक़्शा भी है कोई