मैं अगर तुम को मिला सकता हूँ महर-ओ-माह से
अपने लिक्खे पर सियाही भी छिड़क सकता हूँ मैं
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नाम ही ले ले तुम्हारा कोई
अब ऐसी वैसी मोहब्बत को क्या सँभालूँ मैं
क़ाएदे बाज़ार के इस बार उल्टे हो गए
चाहता हूँ कि पुकारे तुम्हें दिन रात जहाँ
आँख खुल जाए तो घर मातम-कदा बन जाएगा
बड़े घरों में रही है बहुत ज़माने तक
सैर-ए-दुनिया को जाते हो जाओ
ऐसी ही एक शब में किसी से मिला था दिल
इश्क़ में सच्चा था वो मेरी तरह
ख़ुदा मुआफ़ करे सारे मुंसिफ़ों के गुनाह
इश्क़ का मतलब किसे मालूम था
तबाह ख़ुद को उसे ला-ज़वाल करते हैं