सैर-ए-दुनिया को जाते हो जाओ
है कोई शहर मेरे दिल जैसा
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उस का मिलना कोई मज़ाक़ है क्या
एक दिन दोनों ने अपनी हार मानी एक साथ
मुझ को भी पहले-पहल अच्छे लगे थे ये गुलाब
दूर जितना भी चला जाए मगर
नाम से उस के पुकारूँ ख़ुद को
फूल वो रखता गया और मैं ने रोका तक नहीं
ख़ुदा मुआफ़ करे ज़िंदगी बनाते हैं
किसी के साए किसी की तरफ़ लपकते हुए
सड़क के दोनों तरफ़ ख़ैरियत है
वो तो कहिए आप की ख़ुशबू ने पहचाना मुझे
कैसी जन्नत के तलबगार हैं तू जानता है
मोहब्बत वाले हैं कितने ज़मीं पर