फूल वो रखता गया और मैं ने रोका तक नहीं
डूब भी सकती है मेरी नाव सोचा तक नहीं
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हैं लापता ज़माने से सारे के सारे ख़्वाब
नाम से उस के पुकारूँ ख़ुद को
सब अपने अपने ख़ुदाओं में जा के बैठ गए
ख़ुदा मुआफ़ करे सारे मुंसिफ़ों के गुनाह
मैं ख़ानक़ाह-ए-बदन से उदास लौट आया
तुम तो सर्दी की हसीं धूप का चेहरा हो जिसे
नाम ही ले ले तुम्हारा कोई
इंसानियत के ज़ोम ने बर्बाद कर दिया
दूर जितना भी चला जाए मगर
रो रो के लोग कहते थे जाती रहेगी आँख
भरे हुए हैं अभी रौशनी की दौलत से