मोहब्बत वाले हैं कितने ज़मीं पर
अकेला चाँद ही बे-नूर है क्या
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वो तो कहिए आप की ख़ुशबू ने पहचाना मुझे
भरे हुए हैं अभी रौशनी की दौलत से
लिपटा भी एक बार तो किस एहतियात से
आम मुआफ़ी के लिए
वो मेरे लम्स से महताब बन चुका होता
आसमानों से ज़मीं की तरफ़ आते हुए हम
फ़लक का थाल ही हम ने उलट डाला ज़मीं पर
सैर-ए-दुनिया को जाते हो जाओ
बड़े घरों में रही है बहुत ज़माने तक
एक करवट पे रात क्या कटती
सहरा ओ शहर सब से आज़ाद हो रहा हूँ
क़ाएदे बाज़ार के इस बार उल्टे हो गए