वो मेरे लम्स से महताब बन चुका होता
मगर मिला भी तो जुगनू पकड़ने वालों को
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भरे हुए हैं अभी रौशनी की दौलत से
वो तो कहिए आप की ख़ुशबू ने पहचाना मुझे
रेल देखी है कभी सीने पे चलने वाली
डूबने वाला ही था साहिल बरामद कर लिया
अपनी मर्ज़ी के ख़िलाफ़
एक करवट पे रात क्या कटती
वो अपने शहर-ए-फ़राग़त से कम निकलता है
तबाह कर तो दूँ ज़ाहिर-परस्त दुनिया को
हम बहुत पछताए आवाज़ों से रिश्ता जोड़ कर
कथार्सिस
चख लिया उस ने प्यार थोड़ा सा
ख़ुदा मुआफ़ करे ज़िंदगी बनाते हैं