चाहता हूँ मैं तशद्दुद छोड़ना
ख़त ही लिखते हैं जवाबी लोग सब
Mohsin Naqvi
Gulzar
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Allama Iqbal
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Mir Taqi Mir
Habib Jalib
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हर मुत्तक़ी को इस से सबक़ लेना चाहिए
रो रो के लोग कहते थे जाती रहेगी आँख
इस बार इंतिज़ाम तो सर्दी का हो गया
उस का मिलना कोई मज़ाक़ है क्या
सड़क के दोनों तरफ़ ख़ैरियत है
भरे हुए हैं अभी रौशनी की दौलत से
दश्त में रात बनाते हुए डरता हूँ मैं
तबाह कर तो दूँ ज़ाहिर-परस्त दुनिया को
दूर जितना भी चला जाए मगर
हमें बुरा नहीं लगता सफ़ेद काग़ज़ भी
इश्क़ में सच्चा था वो मेरी तरह
आम मुआफ़ी के लिए