फ़क़ीर लोग रहे अपने अपने हाल में मस्त
नहीं तो शहर का नक़्शा बदल चुका होता
Javed Akhtar
Rahat Indori
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Parveen Shakir
Habib Jalib
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(345) Peoples Rate This
बरसों पुराने ज़ख़्म को बे-कार कर दिया
फ़्रीज़र में रक्खी शाम
सब फ़ना होते हुए शहर हैं निगरानी में
अपनी आहट पे चौंकता हूँ मैं
दूर जितना भी चला जाए मगर
नाम से उस के पुकारूँ ख़ुद को
तुम तो सर्दी की हसीं धूप का चेहरा हो जिसे
मैं ख़ानक़ाह-ए-बदन से उदास लौट आया
जान-ए-जाँ मायूस मत हो हालत-ए-बाज़ार से
फ़लक का थाल ही हम ने उलट डाला ज़मीं पर
रात लम्बी थी सितारा मिरा ताजील में था