खिल रहे हैं मुझ में दुनिया के सभी नायाब फूल
इतनी सरकश ख़ाक को किस अब्र ने नम कर दिया
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Rahat Indori
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Anwar Masood
Habib Jalib
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फूल वो रखता गया और मैं ने रोका तक नहीं
नए चराग़ की लौ पाँव से लिपटती है
बड़े घरों में रही है बहुत ज़माने तक
सारे चक़माक़-बदन आया था तय्यारी से
मस्जिदों में क़त्ल होने की रिवायत है यहाँ
इंसानियत के ज़ोम ने बर्बाद कर दिया
फिर इस मज़ाक़ को जम्हूरियत का नाम दिया
मैं अगर तुम को मिला सकता हूँ महर-ओ-माह से
आम मुआफ़ी के लिए
कथार्सिस
मोहब्बत वाले हैं कितने ज़मीं पर
बताऊँ कैसे कि सच बोलना ज़रूरी है