खिल रहे हैं मुझ में दुनिया के सभी नायाब फूल
इतनी सरकश ख़ाक को किस अब्र ने नम कर दिया
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हम भी माचिस की तीलियों से थे
सारे चक़माक़-बदन आए थे तय्यारी से
हम जैसों ने जान गँवाई पागल थे
तौक़-ए-बदन उतार के फेंका ज़मीं से दूर
कोई समझाए मिरे मद्दाह को
और मत देखिए अब अद्ल-ए-जहाँगीर के ख़्वाब
मैं ने भी अपने ध्यान में अपना सफ़र किया
हमें बुरा नहीं लगता सफ़ेद काग़ज़ भी
वो तो कहिए आप की ख़ुशबू ने पहचाना मुझे
जान-ए-जाँ मायूस मत हो हालत-ए-बाज़ार से
रेल देखी है कभी सीने पे चलने वाली
पेश लफ़्ज़ एक मोहब्बत नामे का