हम ने भी निगाहों से उन्हें छू ही लिया है
आईने का रुख़ जब वो इधर करते रहे हैं
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दिया साक़ी ने अव्वल रोज़ वो पैमाना मस्ती में
कभी सुनते हैं अक़्ल-ओ-होश की और कम भी पीते हैं
जाँ-बाज़ों के लब पर भी अब ऐश का नाम आया
तारीख़-ए-जुनूँ ये है कि हर दौर-ए-ख़िरद में
भला कब देख सकता हूँ कि ग़म नाकाम हो जाए
पंखुड़ी कोई गुलिस्ताँ से सबा क्या लाई
दिया ख़ामोश है लेकिन किसी का दिल तो जलता है
धड़कनें दिल की गिने ख़ूँ में रवानी माँगे
चिलमन से जो दामन के किनारे निकल आए
हक़ीक़त जिस जगह होती है ताबानी बताती है
है शाम अभी क्या है बहकी हुई बातें हैं
मैं शाद हूँ तो ज़माने में शादमानी है