हम रिवायात को पिघला के 'नुशूर'
इक नए फ़न के क़रीब आ पहुँचे
Anwar Masood
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Habib Jalib
Jaun Eliya
Gulzar
Allama Iqbal
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दिया साक़ी ने अव्वल रोज़ वो पैमाना मस्ती में
दुनिया की बहारों से आँखें यूँ फेर लीं जाने वालों ने
कभी झूटे सहारे ग़म में रास आया नहीं करते
यही काँटे तो कुछ ख़ुद्दार हैं सेहन-ए-गुलिस्ताँ में
ज़ीस्त मिलती है उम्र-ए-फ़ानी से
गुनाहगार तो रहमत को मुँह दिखा न सका
मिरा दिल न था अलम-आश्ना कि तिरी अदा पे नज़र पड़ी
चिलमन से जो दामन के किनारे निकल आए
शौक़ था शबाब का हुस्न पर नज़र गई
इक दामन-ए-रंगीं लहराया मस्ती सी फ़ज़ा में छा ही गई
मआज़-अल्लाह मय-ख़ाने के औराद-ए-सहर-गाही
सहर और शाम से कुछ यूँ गुज़रता जा रहा हूँ मैं