गुनाहगार तो रहमत को मुँह दिखा न सका
जो बे-गुनाह था वो भी नज़र मिला न सका
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मैं तिनकों का दामन पकड़ता नहीं हूँ
नज़र नज़र को साक़ी-ए-हयात कहते आए हैं
मलाहत जवानी तबस्सुम इशारा
हज़ार शम्अ फ़रोज़ाँ हो रौशनी के लिए
मेरे लिए क्या है कुछ भी नहीं
ज़ाहिद असीर-ए-गेसू-ए-जानाँ न हो सका
है शाम अभी क्या है बहकी हुई बातें हैं
ये नीम-बाज़ तिरी अँखड़ियों के मयख़ाने
हाथ से दुनिया निकलती जाएगी
यही काँटे तो कुछ ख़ुद्दार हैं सेहन-ए-गुलिस्ताँ में
दिया ख़ामोश है लेकिन किसी का दिल तो जलता है