दुनिया की बहारों से आँखें यूँ फेर लीं जाने वालों ने
जैसे कोई लम्बे क़िस्से को पढ़ते पढ़ते उकता जाए
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Rahat Indori
Jaun Eliya
Gulzar
Wasi Shah
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
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Friends Poetry
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सहर और शाम से कुछ यूँ गुज़रता जा रहा हूँ मैं
हस्ती का नज़ारा क्या कहिए मरता है कोई जीता है कोई
ज़माना याद करे या सबा करे ख़ामोश
एक रिश्ता भी मोहब्बत का अगर टूट गया
मैं अभी से किस तरह उन को बेवफ़ा कहूँ
याद आती रही भुला न सके
हर ज़र्रा-ए-ख़ाकी को किरन हम ने बनाया
पैराहन-ए-रंगीं से शोला सा निकलता है
मलाहत जवानी तबस्सुम इशारा
है शाम अभी क्या है बहकी हुई बातें हैं
ज़िंदगी परछाइयाँ अपनी लिए