मैं अभी से किस तरह उन को बेवफ़ा कहूँ
मंज़िलों की बात है रास्ते में क्या कहूँ
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दौलत का फ़लक तोड़ के आलम की जबीं पर
चमन को ख़ार-ओ-ख़स-ए-आशियाँ से आर न हो
सलीक़ा जिन को होता है ग़म-ए-दौराँ में जीने का
गुनाहगार तो रहमत को मुँह दिखा न सका
दिल-ओ-दिलबर सही अब ख़्वाब से बेदार हैं दोनों
क़ामत-ए-दिल-रुबा पर शबाब आ गया
पैराहन-ए-रंगीं से शोला सा निकलता है
हक़ीक़त जिस जगह होती है ताबानी बताती है
'नुशूर' आलूदा-ए-इस्याँ सही पर कौन बाक़ी है
मलाहत जवानी तबस्सुम इशारा
वक़्त का क़ाफ़िला आता है गुज़र जाता है
हज़ार शम्अ फ़रोज़ाँ हो रौशनी के लिए