तारीख़-ए-जुनूँ ये है कि हर दौर-ए-ख़िरद में
इक सिलसिला-ए-दार-ओ-रसन हम ने बनाया
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Habib Jalib
Parveen Shakir
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मआज़-अल्लाह मय-ख़ाने के औराद-ए-सहर-गाही
ये नज़्म-ए-गुरेज़ाँ है बरहम-ज़दनी पहले
मैं अभी से किस तरह उन को बेवफ़ा कहूँ
अंजाम-ए-वफ़ा ये है जिस ने भी मोहब्बत की
लम्हे उलझन के क़रीब आ पहुँचे
भुलाता हूँ मगर ग़म की दरख़शानी नहीं जाती
ये नीम-बाज़ तिरी अँखड़ियों के मयख़ाने
क़ामत-ए-दिल-रुबा पर शबाब आ गया
दुनिया की बहारों से आँखें यूँ फेर लीं जाने वालों ने
भला कब देख सकता हूँ कि ग़म नाकाम हो जाए
हक़ीक़त जिस जगह होती है ताबानी बताती है
चमन को ख़ार-ओ-ख़स-ए-आशियाँ से आर न हो