किस बेबसी के साथ बसर कर रहा है उम्र
इंसान मुश्त-ए-ख़ाक का एहसास लिए हुए
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Habib Jalib
Parveen Shakir
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क़दम मय-ख़ाना में रखना भी कार-ए-पुख़्ता-काराँ है
मैं शाद हूँ तो ज़माने में शादमानी है
ज़िंदगी परछाइयाँ अपनी लिए
हक़ीक़त जिस जगह होती है ताबानी बताती है
शौक़ था शबाब का हुस्न पर नज़र गई
ये नीम-बाज़ तिरी अँखड़ियों के मयख़ाने
अंजाम-ए-वफ़ा ये है जिस ने भी मोहब्बत की
सरक कर आ गईं ज़ुल्फ़ें जो इन मख़मूर आँखों तक
तेज़-तर लहजा-ए-गुफ़्तार किया है हम ने
उसी को ज़िंदगी का साज़ दे के मुतमइन हूँ मैं
जाँ-बाज़ों के लब पर भी अब ऐश का नाम आया
धड़कनें दिल की गिने ख़ूँ में रवानी माँगे