रास्ती से तुझ कूँ करना है निबाह
हाथ जो पकड़ा मिरा दहना सजन
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मिरा प्यारा है ना-फ़रमाँ हमेशा और प्यारों में
तुझ चेहरा-ए-गुल-रंग नीं ख़ूबाँ को गुल-गूनी दिया
सद-हैफ़ कि कमज़ोर है चश्मान बुढ़ापा
दिलबर-ए-बे-बाक सूँ ख़ूब नहीं बोलना
माह-रू निकले है नित उजली तरह
तुझ बुत का हूँ मैं बरहमन कर्तार की सौगंद है
तिरा बुलबुल हूँ तुझ गुल की क़सम है
नज़र मत बुल-हवस पर कर अरे चंचल सँभाल अँखियाँ
ख़ूब है आशिक़ सूँ मिल रहना सजन
हुस्न के डंके की धूम जग में पड़ी जा-ब-जा
मुँह किताबी तेरा बयाज़ी नईं
ऐ बुलबुल-ए-दिल दौड़ के जानाँ कूँ पहुँच तूँ