आँगन आँगन ख़ून के छींटे चेहरा चेहरा बे-चेहरा
किस किस घर का ज़िक्र करूँ में किस किस के सदमात लिखूँ
Gulzar
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निखरना अक़्ल-ओ-ख़िरद का अगर ज़रूरी है
जुस्तुजू के सफ़र में रहते हैं
कोई दिमाग़ से कोई शरीर से हारा
शुऊर तक अभी उन की कहाँ रसाई है
अपना मुहासबा कभी करने नहीं दिया
बड़े ही नाज़ से लाया गया हूँ
गुमरही का मिरी सामान हुआ जाता है
टूटता रहता है मुझ में ख़ुद मिरा अपना वजूद
हमें तो ख़्वाब का इक शहर आँखों में बसाना था
मसअले मेरे सभी हल कर दे
हम बुरा करते या भला करते