हमें तो ख़्वाब का इक शहर आँखों में बसाना था
और इस के बा'द मर जाने का सपना देख लेना था
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ईमाँ का तक़ाज़ा है कि ख़ुद्दार बनो
आँगन आँगन ख़ून के छींटे चेहरा चेहरा बे-चेहरा
हम दिल का हर इक ज़ख़्म छुपा लेते थे
गुमरही का मिरी सामान हुआ जाता है
एक मुद्दत से जो सीने में बसा है क्या है
दिखाओ सूरत-ए-ताज़ा बयान से पहले
अपनी ही ज़ात के महबस में समाने से उठा
घर के अंदर भोली-भाली सूरतें अच्छी लगीं
मसअले मेरे सभी हल कर दे
हम बुरा करते या भला करते
मंज़िलें और भी हैं वहम-ओ-गुमाँ से आगे