दिखाओ सूरत-ए-ताज़ा बयान से पहले
कहानी और है कुछ दास्तान से पहले
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पुर-कैफ़ कहीं के भी नज़ारे न रहेंगे
शुऊर तक अभी उन की कहाँ रसाई है
एक मुद्दत से जो सीने में बसा है क्या है
आँगन आँगन ख़ून के छींटे चेहरा चेहरा बे-चेहरा
बच्चों को हम न एक खिलौना भी दे सके
यही इक सानेहा कुछ कम नहीं है
आशोब-ए-ज़माना से है डरना कैसा
निखरना अक़्ल-ओ-ख़िरद का अगर ज़रूरी है
तलाशे जा रहे हैं अहद-ए-रफ़्ता
अपनी ही ज़ात के महबस में समाने से उठा
जहाँ पहुँचने की ख़्वाहिश में उम्र बीत गई
नज़र में दूर तलक रहगुज़र ज़रूरी है