नज़र में दूर तलक रहगुज़र ज़रूरी है
किसी भी सम्त हो लेकिन सफ़र ज़रूरी है
Mohsin Naqvi
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Habib Jalib
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आलाम-ओ-मसाइब से लड़ा करते हैं
तलाशे जा रहे हैं अहद-ए-रफ़्ता
जब धूप सर पे थी तो अकेला था में 'उबैद'
मेरे जज़्बात आँसुओं वाले
पुर-कैफ़ कहीं के भी नज़ारे न रहेंगे
आशोब-ए-ज़माना से है डरना कैसा
मसअले मेरे सभी हल कर दे
शुऊर तक अभी उन की कहाँ रसाई है
अहबाब ने सौ तरह हमें ख़्वार किया
है आज अंधेरा हर जानिब और नूर की बातें करते हैं
शोख़ी किसी में है न शरारत है अब 'उबैद'
हम बुरा करते या भला करते