मेरे जज़्बात आँसुओं वाले
शेर सब हिचकियों से लिखता हूँ
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आलाम-ओ-मसाइब से लड़ा करते हैं
बच्चों को हम न एक खिलौना भी दे सके
यही इक सानेहा कुछ कम नहीं है
शो'लों की तरह हैं कभी शबनम की तरह
जहाँ पहुँचने की ख़्वाहिश में उम्र बीत गई
जुस्तुजू के सफ़र में रहते हैं
जब धूप सर पे थी तो अकेला था में 'उबैद'
आशोब-ए-ज़माना से है डरना कैसा
बड़े ही नाज़ से लाया गया हूँ
एक मुद्दत से जो सीने में बसा है क्या है
हमें तो ख़्वाब का इक शहर आँखों में बसाना था
नक़ाब चेहरे से मेरे हटा रही है ग़ज़ल