अहबाब ने सौ तरह हमें ख़्वार किया
ग़म इतने दिए हम को कि बीमार किया
जो ज़ख़्म मिला दिल में छुपाया उस को
चेहरे को न हम ने मगर अख़बार किया
Gulzar
Jaun Eliya
Habib Jalib
Allama Iqbal
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(643) Peoples Rate This
तामीर-ओ-तरक़्क़ी वाले हैं कहिए भी तो उन को क्या कहिए
घटती बढ़ती रही परछाईं मिरी ख़ुद मुझ से
मसअले मेरे सभी हल कर दे
जुस्तुजू के सफ़र में रहते हैं
जब धूप सर पे थी तो अकेला था में 'उबैद'
मंज़िलें और भी हैं वहम-ओ-गुमाँ से आगे
जहाँ पहुँचने की ख़्वाहिश में उम्र बीत गई
यही इक सानेहा कुछ कम नहीं है
अपनी ही ज़ात के महबस में समाने से उठा
ख़ुशबू तिरे लहजे की मिरे फ़न में बसी है
है आज अंधेरा हर जानिब और नूर की बातें करते हैं
शोख़ी किसी में है न शरारत है अब 'उबैद'