तामीर-ओ-तरक़्क़ी वाले हैं कहिए भी तो उन को क्या कहिए
जो शीश-महल में बैठे हुए मज़दूर की बातें करते हैं
Anwar Masood
Habib Jalib
Jaun Eliya
Wasi Shah
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Gulzar
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
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दिखाओ सूरत-ए-ताज़ा बयान से पहले
पुर-कैफ़ कहीं के भी नज़ारे न रहेंगे
शुऊर तक अभी उन की कहाँ रसाई है
गुमरही का मिरी सामान हुआ जाता है
अहबाब ने सौ तरह हमें ख़्वार किया
तलाशे जा रहे हैं अहद-ए-रफ़्ता
हम दिल का हर इक ज़ख़्म छुपा लेते थे
आँगन आँगन ख़ून के छींटे चेहरा चेहरा बे-चेहरा
आशोब-ए-ज़माना से है डरना कैसा
एक मुद्दत से जो सीने में बसा है क्या है
मंज़िलें और भी हैं वहम-ओ-गुमाँ से आगे
अपना मुहासबा कभी करने नहीं दिया