आस्तीनों में छुपा कर साँप भी लाए थे लोग
शहर की इस भीड़ में कुछ लोग बाज़ीगर भी थे
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Wasi Shah
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Rahat Indori
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Gulzar
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बे-तअल्लुक़ रूह का जब जिस्म से रिश्ता हुआ
ख़्वाहिशों की आँच में तपते बदन की लज़्ज़तें हैं
अंधेरे बंद कमरों में पड़े थे
नीम के पत्तों का ज़ख़्मों को धुआँ दे दीजिए
फ़ज़ा में कर्ब का एहसास घोलती हुई रात
कोई दस्तक न कोई आहट थी
हम दश्त-ए-बे-कराँ की अज़ाँ हो गए तो क्या
ऐसे भी कुछ लम्हे यारो आएँगे
फ़िक्र कम बयान कम
चाहता है दिल किसी से राज़ की बातें करे
रौशनी भर ख़ला पे बार थे हम
सुर्ख़ मौसम की कहानी तो पुरानी हो गई