तेरी पहचान के लाखों अंदाज़
सर झुकाना ही इबादत तो नहीं
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मेरी आँखों में उतरने वाले
काश तूफ़ाँ में सफ़ीने को उतारा होता
दश्त मेरी ही दुहाई देगा
कहाँ है शोरीदा-सर मुसाफ़िर
तुझ को अब कोई शिकायत तो नहीं
सफ़र-ए-आगही
दिल जलाया तिरी ख़ुशी के लिए
वक़्त
पुल-सिरात
ख़ुद को जब तेरे मुक़ाबिल पाया
कहाँ जा रही हो?
ब-ज़ाहिर ये जो बेगाने बहुत हैं