जुनूँ होता है छा जाती है हैरत
कमाल-ए-अक़्ल इक दीवाना-पन है
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मेरी इज़्ज़त बढ़ गई इक पान में
इक अदना सा पर्दा है इक अदना सा तफ़ावुत
पी बादा-ए-अहमर तो ये कहने लगा गुल-रू
ग़रीब आदमी को ठाट पादशाही का
बहुत से ज़मीं में दबाए गए हैं
मुझ को दुनिया की तमन्ना है न दीं का लालच
कुछ तबीअत आज-कल पाता हूँ घबराई हुई
खिलाया परतव-ए-रुख़्सार ने क्या गुल समुंदर में
दिल में तीर-ए-इश्क़ है और फ़र्क़ पर शमशीर-ए-इश्क़
नर्गिसीं आँख भी है अबरू-ए-ख़मदार के पास
न आया कर के व'अदा वस्ल का इक़रार था क्या था
मिरी क़िस्मत लिखी जाती थी जिस दिन मैं अगर होता