ग़ुस्से में आ के मैं ने कहा अपनी सास से
कुछ देर मेरी बीवी का पीछा भी छोड़ दे
बेटी के साथ माँ मुझे तस्लीम है मगर
लेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे
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जाम
इस मर्तबा भी आए हैं नंबर तिरे तो कम
शिकारी
बद-दुआ
अन-जाना डर
बेटी
डाकुओं की कांफ्रेंस
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ