जब दर्द की शमएँ जलती हैं एहसास के नाज़ुक सीने में
जब दर्द की शमएँ जलती हैं एहसास के नाज़ुक सीने में
इक हुस्न सा शामिल होता है फिर तन्हा तन्हा जीने में
कुछ लुत्फ़ की गर्मी की ख़ातिर कुछ जान-ए-वफ़ा के सदक़े में
गेसू-ए-अलम के साए में राहत सी मिली है पीने में
आग़ोश-ए-तमन्ना छू आएँ जब ज़ुल्फ़-ए-यार की ख़ुश्बू में
आँखों में सावन लहराया दीपक सा सुलगा सीने में
मौसीक़ी-ए-हुस्न की मौजें थी कुछ आँखों में कुछ प्यालों में
जो साहिल-ए-दिल तक हो आएँ यादों के एक सफ़ीने में
पलकों में सुलगते तारों से मैं रात की अफ़्शाँ चुन न सका
शोलों को छुपाए फिरता हूँ मैं दिल के एक नगीने में
वो रंग-ए-हया एहसास-ए-तरब आईना-ए-रुख़ के अक्स-फ़गन
इक ताबिश तेरे चेहरे की इक आँच सी मेरे सीने में
कलियों ने घूँघट सरकाए शबनम ने मोती रोल दिए
लज़्ज़त सी मिली है अश्कों से ये चाक जिगर का सीने में
नग़्मों की चाँदनी छिटकी है शेरों के शबिस्ताँ महके हैं
फिर साज़-ए-ग़ज़ल ले आया हूँ इक लुत्फ़ है अक्सर जीने में
(393) Peoples Rate This