क़मर जलालवी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का क़मर जलालवी (page 3)
नाम | क़मर जलालवी |
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अंग्रेज़ी नाम | Qamar Jalalvi |
जन्म की तारीख | 1887 |
मौत की तिथि | 1968 |
जन्म स्थान | Karachi |
लहद और हश्र में ये फ़र्क़ कम पाए नहीं जाते
ख़त्म शब क़िस्सा-ए-मुख़्तसर न हुई
कौन से थे वो तुम्हारे अहद जो टूटे न थे
करते भी क्या हुज़ूर न जब अपने घर मिले
करेंगे शिकवा-ए-जौर-ओ-जफ़ा दिल खोल कर अपना
कभी कहा न किसी से तिरे फ़साने को
कब मेरा नशेमन अहल-ए-चमन गुलशन में गवारा करते हैं
इस में कोई फ़रेब तो ऐ आसमाँ नहीं
हुस्न कब इश्क़ का ममनून-ए-वफ़ा होता है
हुक्म-ए-सय्याद है ता-ख़त्म-ए-तमाशा-ए-बहार
हटी ज़ुल्फ़ उन के चेहरे से मगर आहिस्ता आहिस्ता
दोनों हैं उन के हिज्र का हासिल लिए हुए
दिल अगर होता तो मिल जाता निशान-ए-आरज़ू
देखते हैं रक़्स में दिन रात पैमाने को हम
देखिए हो गई बदनाम मसीहाई भी
छोड़ कर घर-बार अपना हसरत-ए-दीदार में
बारिश में अहद तोड़ के गर मय-कशी हुई
बला से हो शाम की सियाही कहीं तो मंज़िल मिरी मिलेगी
ब-जुज़ तुम्हारे किसी से कोई सवाल नहीं
बाग़-ए-आलम में रहे शादी-ओ-मातम की तरह
अगर छूटा भी उस से आइना-ख़ाना तो क्या होगा
अबरू तो दिखा दीजिए शमशीर से पहले
अब तो मुँह से बोल मुझ को देख दिन भर हो गया
अब मुझे गुलशन से क्या जब ज़ेर-ए-दाम आ ही गया
आह को समझे हो क्या दिल से अगर हो जाएगी