अब मुझे गुलशन से क्या जब ज़ेर-ए-दाम आ ही गया

अब मुझे गुलशन से क्या जब ज़ेर-ए-दाम आ ही गया

इक नशेमन था सो वो बिजली के काम आ ही गया

सुन मआल-ए-सोज़-ए-उल्फ़त जब ये नाम आ ही गया

शम्अ आख़िर जल-बुझी परवाना काम आ ही गया

तालिब-ए-दीदार का इसरार काम आ ही गया

सामने कोई ब-हुस्न-ए-इंतिज़ाम आ ही गया

कोशिश-ए-मंज़िल से तो अच्छी रही दीवानगी

चलते-फिरते उन से मिलने का मक़ाम आ ही गया

राज़-ए-उल्फ़त मरने वाले ने छुपाया तो बहुत

दम निकलते वक़्त लब पर उन का नाम आ ही गया

कर दिया मशहूर पर्दे में तुझे ज़हमत न दी

आज को होना हमारा तेरे काम आ ही गया

जब उठा साक़ी तो वाइज़ की न कुछ भी चल सकी

मेरी क़िस्मत की तरह गर्दिश में जाम आ ही गया

हुस्न को भी इश्क़ की ज़िद रखनी पड़ती है कभी

तूर पर मूसा से मिलने का पयाम आ ही गया

देर तक बाब-ए-हरम पर रुक के इक मजबूर-ए-इश्क़

सू-ए-बुत-ख़ाना ख़ुदा का ले के नाम आ ही गया

रात भर माँगी दुआ उन के न जाने की 'क़मर'

सुब्ह का तारा मगर ले कर पयाम आ ही गया

(595) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Qamar Jalalvi. is written by Qamar Jalalvi. Complete Poem in Hindi by Qamar Jalalvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.