Ghazals of Qamar Jameel
नाम | क़मर जमील |
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अंग्रेज़ी नाम | Qamar Jameel |
जन्म की तारीख | 1927 |
मौत की तिथि | 2000 |
वो बातें इश्क़ कहता था कि सारा घर महकता था
शाम अजीब शाम थी जिस में कोई उफ़क़ न था
शैख़ के घर के सामने आब-ए-हराम डाल दूँ
शहर की गलियाँ घूम रही हैं मेरे क़दम के साथ
साया नहीं है दूर तक साए में आएँ किस तरह
मैं जिन्हें फ़रेब समझूँ तिरी याद-ए-मेहरबाँ के
किस सफ़र में हैं कि अब तक रास्ते नादीदा हैं
ख़्वाब में जो कुछ देख रहा हूँ उस का दिखाना मुश्किल है
जाने दो इन नग़्मों को आहंग-ए-शिकस्त-ए-साज़ न समझो
हम कि मजनूँ को दुआ कहते हैं
ग़म-ए-जानाँ की ख़बर लाती है
एक पत्थर कि दस्त-ए-यार में है
एक अजब शहज़ादा मेरे बाग़ों का
दस्त-ए-जुनूँ में दामन-ए-गुल को लाने की तदबीर करें
अपने सब चेहरे छुपा रक्खे हैं आईने में
आसमाँ पर इक सितारा शाम से बेताब है
आज सितारे आँगन में हैं उन को रुख़्सत मत करना