जिस क़दर जज़्ब-ए-मोहब्बत का असर होता गया
इश्क़ ख़ुद तर्क ओ तलब से बे-ख़बर होता गया
Parveen Shakir
Wasi Shah
Gulzar
Habib Jalib
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Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Jaun Eliya
Javed Akhtar
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किसी की राह में काँटे किसी की राह में फूल
नज़र है जल्वा-ए-जानाँ है देखिए क्या हो
साक़िया तंज़ न कर चश्म-ए-करम रहने दे
मंज़िलों के निशाँ नहीं मिलते
यूँ न मिलने के सौ बहाने हैं
तुम उसी को वज्ह-ए-तरब कहो हम उसी को बाइ'स-ए-ग़म कहें
मोहब्बत का जहाँ है और मैं हूँ
अब मैं समझा तिरे रुख़्सार पे तिल का मतलब
लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-जिगर याद आई
दैर ओ काबा से जो हो कर गुज़रे
मेरी राहों में कई मरहले दुश्वार आए