हर्फ़ आने न दिया इश्क़ की ख़ुद्दारी पर
काम नाकाम तमन्ना से लिया है मैं ने
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मोहब्बत का जहाँ है और मैं हूँ
साक़िया तंज़ न कर चश्म-ए-करम रहने दे
लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-जिगर याद आई
अब मैं समझा तिरे रुख़्सार पे तिल का मतलब
नज़र है जल्वा-ए-जानाँ है देखिए क्या हो
मंज़िलों के निशाँ नहीं मिलते
यूँ न मिलने के सौ बहाने हैं
मेरी राहों में कई मरहले दुश्वार आए
बे-नक़ाब उन की जफ़ाओं को किया है मैं ने
दैर ओ काबा से जो हो कर गुज़रे