अब मैं समझा तिरे रुख़्सार पे तिल का मतलब
दौलत-ए-हुस्न पे दरबान बिठा रक्खा है
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Jaun Eliya
Habib Jalib
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Gulzar
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(483) Peoples Rate This
मेरी राहों में कई मरहले दुश्वार आए
लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-जिगर याद आई
तुम उसी को वज्ह-ए-तरब कहो हम उसी को बाइ'स-ए-ग़म कहें
मुद्दतों बाद जो इस राह से गुज़रा हूँ 'क़मर'
यूँ न मिलने के सौ बहाने हैं
बे-नक़ाब उन की जफ़ाओं को किया है मैं ने
जिस क़दर जज़्ब-ए-मोहब्बत का असर होता गया
क़दम उठे भी नहीं बज़्म-ए-नाज़ की जानिब
साक़िया तंज़ न कर चश्म-ए-करम रहने दे
मंज़िलों के निशाँ नहीं मिलते
किसी की राह में काँटे किसी की राह में फूल