क़दम उठे भी नहीं बज़्म-ए-नाज़ की जानिब
ख़याल अभी से परेशाँ है देखिए क्या हो
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Rahat Indori
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Wasi Shah
Habib Jalib
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(445) Peoples Rate This
लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-जिगर याद आई
जिस क़दर जज़्ब-ए-मोहब्बत का असर होता गया
हर्फ़ आने न दिया इश्क़ की ख़ुद्दारी पर
मोहब्बत का जहाँ है और मैं हूँ
नज़र है जल्वा-ए-जानाँ है देखिए क्या हो
मेरी राहों में कई मरहले दुश्वार आए
किसी की राह में काँटे किसी की राह में फूल
अब मैं समझा तिरे रुख़्सार पे तिल का मतलब
मंज़िलों के निशाँ नहीं मिलते
तुम उसी को वज्ह-ए-तरब कहो हम उसी को बाइ'स-ए-ग़म कहें
मुद्दतों बाद जो इस राह से गुज़रा हूँ 'क़मर'