वहाँ तो रोज़ सितारा नया चमकता है

वहाँ तो रोज़ सितारा नया चमकता है

यहाँ बस एक ही जुगनू है जो सिसकता है

उसे तो वक़्त ने ख़ामोशियाँ ही बख़्शी हैं

जो अपनी राह बदलता है और भटकता है

वो एक झूट था जो रौशनी में आ पहुँचा

ये एक सच है अंधेरों में जो भटकता है

तू किस ख़याल में किस सोच में है फ़िक्र न कर

कि मेरा ज़ख़्म तिरा ज़ुल्म छुप तो सकता है

लगा लिए हैं जो मैं ने भी मौसमी चेहरे

तू मेरे घर में भी सूरज सा इक चमकता है

'नियाज़ी' आज उस आतिश-बदन की याद आई

कि जिस के नाम से शो'ला सा इक लपकता है

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In Hindi By Famous Poet Qasim Niyazi. is written by Qasim Niyazi. Complete Poem in Hindi by Qasim Niyazi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.