मिरी नज़र में है 'क़ाएम' ये काएनात तमाम
नज़र में गो कोई लाता नहीं है याँ मुझ को
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जूँ इबरत-ए-कोर जल्वा-गर हूँ
गो ब-नाम इक ज़बान रखती है शम्अ
क़त्ल पे तेरे मुझे कद चाहिए
गंदुमी रंग जो है दुनिया में
की वफ़ा किस से भला फ़ाहिशा-ए-दुनिया ने
ख़त के आते ही वो मुखड़े की सफ़ाई क्या हुई
फिर के जो वो शोख़ नज़र कर गया
आ ऐ 'असर' मुलाज़िम-ए-सरकार-ए-गिर्या हो
नासेहा कर न इसे सी के पशेमाँ मुझ को
माँगे है तिरे मिलने को बे-तरह से दिल आज
क्या में क्या ए'तिबार मेरा
कभू दिखा के कमर और कभू दहाँ मुझ को