आ ऐ 'असर' मुलाज़िम-ए-सरकार-ए-गिर्या हो
याँ जुज़ गुहर ख़ज़ाने में तनख़्वाह ही नहीं
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Rahat Indori
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Anwar Masood
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(308) Peoples Rate This
वाक़िफ़ नहीं हम कि क्या है बेहतर
चाहिए आदमी हो बार-ए-तअल्लुक़ से बरी
टुकड़े कई इक दिल के मैं आपस में सिए हैं
चाहें हैं ये हम भी कि रहे पाक मोहब्बत
है बे-असर ऐसी ही जो अपनी कशिश-ए-दिल
ज़ाहिद दर-ए-मस्जिद पे ख़राबात की तू ने
फूटी भली वो आँख जो आँसू से तर नहीं
दुख़्तर-ए-रज़ तो है बेटी सी तिरे ऊपर हराम
वहशत-ए-दिल कोई शहरों में समा सकती है
इक ढब पे कभू वो बुत-ए-ख़ुद-काम न पाया
रस्म इस घर की नहीं दाद किसू की दे कोई
कोई दिन आगे भी ज़ाहिद अजब ज़माना था